कुछ गलत या अव्यवस्थित है।
मेरे कहने का मतलब है "इंसान इतना असंतुष्ट क्यों है?" या थोड़ा और स्पष्ट रूप से कहु तो, "प्रकृति का दिया हुआ हमारे पास सबकुछ है, तो जीवन में इतना संघर्ष क्यों है?"
हालांकि मैं निश्चित रूप से इस सवाल का जवाब नहीं दे सकता, लेकिन मैं उन कुछ चीजों को साझा करना चाहूंगा जिन्हें मैंने इस संबंध में मददगार पाया है। ये दुख की वास्तविकता को कम करने के लिए नहीं हैं। लेकिन वास्तविक दर्द और नुकसान का परिणाम है। लेकिन मेरा मानना है कि इस विषय पर कहने के लिए हमारे पास कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं।
दुनिया कई अलग-अलग समस्याओं से भरी है, लेकिन कई अलग-अलग लोगों से भी। जब आप अलग-अलग लोगों को एक ही समस्या से जोड़ते हैं तो वे अलग-अलग प्रतिक्रिया देंगे, यह उल्टा भी काम करता है जहाँ एक ही व्यक्ति अलग-अलग समस्याओं पर अलग-अलग प्रतिक्रिया दे सकता है। निष्कर्ष में हर कोई चीजों को अलग तरह से देखता है।
हम इस दुनिया में एक दूसरे के साथ जरुरत की डोर से बंधे हुए है। या ये कहना उचित होगा की हम एक ऐसा जीवन जी रहे है जो हमारी जरुरत के आधार पर तय होता है। सच तो यह है की हमारे समाज की परंपरा और रीतिरिवाज हमें एक सिमित जीवन जीने के लिए मजबूर करते है।
हमारी जरूरते ही है जो हमारे जीवन के दुखो का अधिकांश हिस्सा है। लेकिन संघर्ष के बिना दुनिया वास्तव में दर्द रहित होगी। एक पल के लिए सोचें: अगर हमें दर्द का पता ही ना हो, तो हम शांति को कैसे जान पाएंगे, यदि आपको पता नहीं है कि आपको चोट लगी है, तो आप कैसे जानेंगे कि आपको उपचार करने की आवश्यकता है?
जब हम पृथ्वी पर जन्म लेते है तो हम इस तथ्य से जुड़े होते है कि हमारी मृत्यु निश्चित है, केवल एक चीज जो नश्वर है वह है हमारी पवित्र आत्मा।
आत्मा को यहाँ कर्म के आधार पर शरीर प्रदान किया जाता है। शरीर, मन, हृदय और भावनाएं शरीर का हिस्सा हैं जो हमें यहां पृथ्वी पर प्रदान किया जाता है।
समस्याएं, खुशियाँ, विभिन्न अंगों का महसूस करना जैसे कि शरीर, मन, हृदय आदि आभासी हैं। जब कोई हमारे आभासी सम्मान को ठेस पहुंचाएगा तो हम अपमानित महसूस करेंगे, लेकिन आत्मा के साथ कुछ भी जुड़ा नहीं है।
हमारा शरीर प्रकृति के नियम के तहत आता है जैसे की आग के पास जाने पर हमको गर्मी महसूस होगी, बर्फ के पास खड़े होने पर ठंड।
लेकिन, हमारा संघर्ष बेहद आंतरिक है। मानसिक संघर्ष बाहर से स्पष्ट नहीं है, खासकर यदि आप खुद को अलग करते हैं। इसलिए अन्य लोग आपको संघर्ष करते हुए नहीं देख सकते हैं, और आपको ऐसा महसूस हो सकता है कि कोई भी आपके जितना संघर्ष नहीं कर रहा है क्योंकि हम अपने संघर्षों को छिपाते हैं।
यदि कोई संघर्ष नहीं है, तो कोई प्रगति नहीं है।
संघर्ष आपको यह सिखाता है कि आप एक व्यक्ति के रूप में क्या संभाल सकते हैं। यह आपको जीवन की अपरिहार्य कठिनाइयों और दुखों का सामना करने में मदद करता है- अतीत की कठिनाइयों को दूर करने और आगे बढ़ाने के लिए धैर्य को विकसित करने के लिए मदद करता है।
चुनौती बदलाव लाती है। संघर्ष चरित्र का निर्माण करता है। संघर्ष के लिए दृढ़ संकल्प, साहस, तीव्रता और दृढ़ता की आवश्यकता होती है।
मुझे याद है कि जब में छोटा था तो मंदिर में खड़ा भगवान से उन चीज़ो के लिए सिर्फ प्रार्थना करता था, जैसे अच्छे ग्रेड लाना, एक नई साइकिल प्राप्त करना। मैंने कोशिशों में मन नहीं लगाया लेकिन मैं हमेशा चाहता था कि वो चीजें हासिल हों। लेकिन तब किसी ने मुझे कुछ बताया और इसने मेरा जीवन के प्रति दृष्टिकोण बदल गया। -
यदि आप केवल उन चीजों के लिए लड़ते रहें जो आप प्राप्त कर सकते हैं, तो आपको कभी भी ऐसी चीजें नहीं मिलेंगी जो इससे बड़ी हैं।
संघर्ष सफलता का आधार है। अगर असफलता सफलता की सीढी है, तो संघर्ष करना उस पथ्थर की तरह है जो ईमारत बनाते है।
कभी-कभी हम दर्द और कठिनाइयों को एक अलग-थलग अनुभव की तरह महसूस कर सकते हैं। हम महसूस कर सकते हैं जैसे कोई भी यह नहीं समझता है कि हम क्या कर रहे हैं और यह अतिरंजित सोच हमें एक दर्द महसूस करवाती है। हालाँकि, इन परिस्थितियों के बारे में सच्चाई यह है कि अधिकांश लोग जीवन में एक चुनौतीपूर्ण यात्रा पर हैं और क्योंकि संस्कृतियों में गहरी व्यक्तिगत समस्याओं के संचार को प्रोत्साहित नहीं किया जाता है, हम भूल जाते हैं कि हम में से कुछ लोग अकेले अपने लिए विशिष्ट प्रकार की कठिन लड़ाई लड़ रहे हैं।
हालांकि विकास की गलाकाट प्रतिस्पर्धा के चलते हर तरफ नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है। आज विकास की अंधी दौड़ एकांगी मनुष्यता का सृजन कर रही है। इस तरह का विकास अपर्याप्त ही नहीं असंगत भी है। विकास की हमारी अवधारणा में गुणवत्ता पर कम और वृद्धि पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है, जबकि विकास ने हमारी जरूरतें बढ़ाईं।
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